करोड़ों लोगों की जान बचाने वाला एक महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर LUI PASHCHAR की कहानी जो आपकी जिंदगी बदल देगी। THE STORY OF A LOUIS PASTEUR, A GREAT SCIENTIST WHO SAVES MILLIONS OF LIVES, WILL CHANGE YOUR LIFE

 हेलो दोस्तों यह बात 1822 के उन दिनों की बात है जब फ्रांस के गांव में एक चमड़े के निर्धन व्यापारी चमड़े का व्यापार करता था। वह अपनी इस काम से बिल्कुल भी खुश नहीं था, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह बदबूदार चमड़े का काम करें लेकिन उनके पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था और चमड़े के काम के अलावा उन्हें और कोई दूसरा काम भी नहीं आता था। वह अपने आप से बहुत दुखी थे क्योंकि  वह बचपन में पढ़ाई नहीं कर पाया था जिसका खामियाजा उसे अभी भुगतना पड़ रहा था। जब उसे खबर मिला की उनकी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया है तो इस बात से वह बहुत खुश हुआ और वह सोचने लगा की मैं अनपढ़ हूं जिसके कारण मैं चमड़े का काम करता हूं लेकिन मैं अपने बेटे को एक अच्छी सी स्कूल में दाखिला दिलाऊंगा ताकि वह अच्छे से पढ़ सकें और एक बड़ा ऑफिसर बन सके ताकि अपनी लाइफ अच्छे से जी सकें और उन्होंने अपने बेटे का नाम लुई पाश्चर रखा। लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसंबर 1822 को हुआ। जब लुइ पाश्चर 5 साल के हुए तब उनके पिता ने उसे एक महंगे स्कूल में उनका दाखिला कराया और वह सोचने लगा कि मेरा बेटा पढ़ लिख कर एक बड़ा अफसर बन जाएगा लेकिन जब उन्हें पता चला की लुई पाश्चर पढ़ाई में बहुत ही ज्यादा कमजोर है तब लुई पाश्चर के पिता को बहुत दुख हुआ लेकिन लुई पाश्चर बहुत ही ज्यादा मेहनती और ईमानदार था। वह स्कूल जाने के साथ-साथ अपने पिता के काम में भी मदद करता था और एक दिन
 एक अनहोनी घटना घटी एक पागल भेड़िया जंगल से  भागकर गांव में आ गया और 8 लोगों को काट लिया क्योंकि गांव में भेड़ियों का आना  स्वाभाविक था  क्योंकि  गांव  के पास  एक बहुत बड़ा जंगल था  जहां  भेड़िए रहते थे  और आए दिन  लोगों को अपना शिकार बनाते थे। जब  8 लोगों में से  5 लोग रेबीज के शिकार हो गए और वह लोग बिल्कुल पागल भेड़िए जैसे हो गए और अजीबोगरीब  हरकतें  करने लगे  जैसे  भेड़ियों की तरह  पानी से डरना  भेड़ियों की तरह चिल्लाना और वह लोग तड़प तड़प कर मर गए रेबीज  एक  ऐसा बीमारी है जिनका उस समय कोई इलाज नहीं था एक दिन लुई पाश्चर ने अपनेे पिता से पूछा की क्या कुत्ते और भेड़ियों के  काटने से लोग आगेे भी ऐसे ही तड़प तड़प कर मरेंगे तो लुई पाश्चर के पिता ने उसे बताया की रेबीज एक ऐसी बीमारी है जिसका अभी तक  कोई इलाज  नहीं मिल पाया है।  जिससे  लोगों की जान  ऐसे ही  जाति रहेगी। लुई पाश्चर ने  अपने पिता से  पूछा  की  रेबीज  का  इलाज  कैसे मिलेगा  तो उसके पिता ने  कहा  की  अगर  तुम  मन लगाकर पढ़ाई करोगे  तो  तुम भी  इसका इलाज    ढूंढ़  पाओगे  तो  लुई पाश्चर ने  अपने पिता से कहा  की  मैं  अब  मन लगाकर  बिल्कुल  पढ़ाई करूंगा  और  रोज स्कूल जाऊंगा  फिर मुझे  कोई भी बच्चा  मंदबुद्धि  कह कर  चिढ़ाना  बंद कर देंगे  इस  बात से  लुई पाश्चर  के पिता  बहुत खुश हुए  और अपने बेटे को  शाबाशी देते हुए कहा  की  आगे तुम  अच्छे से पढ़ाई  करना  लुई पाश्चर  को  आगे की पढ़ाई के लिए  पेरिस जाना पड़ा  लेकिन  उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या थी  क्योंकि  लुई पाश्चर  एक गरीब घर से  थे  और  पैसों के अभाव उनके आगेे की पढ़ाई का समस्या बन गया। लेकिन लुई पाश्चर के पिता ने दूसरों से  कर्ज लेकर  अपने बेटे को  पेरिस भेजा  पेरिस में  जाकर  लुई पाश्चर ने  खूब मेहनत  करने लगा  वह  पहले रसायन  और  उसके बाद  में भौतिकी  की पढ़ाई  पूरा किया  और  वही कॉलेज में  अध्यापक के रूप में  बाद में  पढ़ाने लगा  लेकिन  अध्यापक होते हुए भी  वह  लाइब्रेरी में  जाकर  जीव विज्ञान  को समझने  की कोशिश  करने लगा  और एक दिन उन्होंने देखा की खानेे वाली हर पदार्थ में कुछ जीव के  अणु पाए जाते हैं जिसके कारण ही  सब्जियां  जल्दी से  खराब हो जाती है  और उन्होंने  सबसे पहले  जीवाणु शब्द का  प्रयोग किया यह जीवाणु इतने छोटे  होते हैं  की  इन्हें  खुली आंखों से देखना  असंभव था  इसे  केवल  सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देखा जा सकता था। लुई पाश्चर ने दूध  को गर्म किया और उसे परीक्षण किया तो उसमें मौजूद सारे जीवाणु  नष्ट हो चुके  थे लुई पाश्चर को अब धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आने लगा उन्हें पता चल चुका  था  की  दूध  और फल  और सब्जियां  क्यों  जल्दी से  खराब हो जाते  हैं  एक दिन  लुई पाश्चर के दोस्त ने  लुई को बताया  की  मेरे सारे मुर्गियां धीरे-धीरे करके मर रही है तो लुइ पाश्चर ने मरेे हुए मुर्गियों के खून से मुर्गियों को बीमार करनेे वाले विषाणु को निकाल कर उन्हें एक खास तरह के लवण में डाला और उसके  बाद वह सारे विषाणु निष्क्रिय हो गए अब लुई पाश्चर ने लवण का एक इंजेक्शन तैयार किया और वह इंजेक्शन सारे स्वस्थ् मुर्गियों को लगाएं जो बीमारी से बिल्कुल भी ग्रसित नहीं थे और उन्हें बीमार मुर्गियों के साथ  छोड़ दिया  कुछ दिन बाद  लुई ने  पाया  की  जीन मुर्गियों को  उन्होंने इंजेक्शन लगाया था  वह मुर्गियां  अभी भी  बीमार मुर्गियों के  साथ रहने के बावजूद भी स्वस्थ  है  और  लुई  जिन मुर्गियों को  इंजेक्शन नहीं लगाया था  वह मुर्गियां  धीरे-धीरे करके  मर गई  लुइ को एक बड़ी सफलता  मिल चुकी थी  वह सोचने लगा  हमारे शरीर में भी  बीमारियों से लड़ने के लिए  रोग  प्रतिरोधक  क्षमता  जैसी  एक खास  शक्ति  होती है  लेकिन  कुछ जीवाणु  इतने पावरफुल होते हैं  की  वह  हमारे शरीर के अंदर जाकर  हमें  बीमार कर देती है  क्योंकि  वह जीवाणु रोग प्रतिरोधक  जैसे  शक्ति के संपर्क में नहीं आता  और  हमें  अंदर ही अंदर  बीमार करते जाते हैं  और  इसी बात को आधार मानकर  लुई   पाश्चर ने रेबीज जैसे घातक संक्रमण बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला और वह इनके टीका बना कर रेबीज से संक्रमित  कुत्तों  पर  प्रयोग करने लगा  और  उनका प्रयोग  सफल भी  हुआ  लेकिन  लुई पाश्चर के सामने सबसे बड़ी समस्या  यह थी  की  जो दवाई  उन्होंने तैयार की है  वह  केवल  जानवरों  के ऊपर  कारगर साबित हुआ  लेकिन यह मानव जाति के लिए कारगर साबित होगा की नहीं बस इसी बात  को सोचकर  वह अपने  प्रयोग  को  आगे बढ़ाने  का सोचा एक दिन एक महिला रोते हुए  लुई पाश्चर के  पास अपने बेटेे को  ले कर आई और लुई पाश्चर  को बताई की उनकेे बेटे को एक कुत्ते ने काट दिया है तो लुई पाश्चर ने उस कुत्ते को किसी तरह पकड़ कर जांच किया तो वह वह कुत्ता रेबीज से संक्रमित था और लुई ने उस कुत्ते को रेबीज की दवाई  का टीका  लगा दिया  लेकिन  उस बच्चे को भी  रेबीज  होने की  पूरी संभावना  थी  लेकिन  लुई के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी  की  अगर  वह  उस बच्चे को  रेबीज  के  बीमारी का टीका लगा देंगे तो बच्चे  के जान जा सकती है और ना लगाई जाएगी तो भी बच्चे् के जान को खतरा ही है क्योंकि लुई पाश्चर ने अभी तक उस दवाई का प्रयोग इंसानों के ऊपर  नहीं किया था। लेकिन लुई पाश्चर  ने बहुत ही कम मात्रा में दवाई लेकर उस  बच्चे को इंजेक्शन लगाया फिर धीरे धीरे दवाई की मात्रा को बढ़ाते गया और कुछ दिन बाद वह बच्चा पूरी तरह से  ठीक हो गया  तो दोस्तों  इस महान वैज्ञानिक  लुई पाश्चर  ने  सन  1885 को रेबीज जैसे घातक संक्रमित बीमारी का इलाज  ढूंढ निकाला  और उसके बाद  फ्रांस की सरकार ने  लुई पाश्चर को  सम्मानित  किया  और  लुई पाश्चर के नाम से  पाश्चर संस्थान  भी  खोला गया  जहां  लुई पाश्चर  लोगों की भलाई  के लिए  अपना  तन मन धन  सब कुछ  लगा दिया  समाज की भलाई करने की धुन में  अपने फैमिली  का ख्याल लुई पाश्चर नहीं रख पाए और उनकेेेे तीन बेटियों में  से उनके दो बेटी ब्रेन ट्यूमर के शिकार हुए और मर गए और कुछ दिन बाद उनके तीसरे बेटी भी टाइफाइड के शिकार हुए और वह भी इस दुनियाा को अलविदा कह गए इस दुख के समय में लुई पाश्चर को अपनी पत्नी के साथ  रहना चाहिए था  लेकिन  लोगों के भलाई  करने के लिए वह अपनी पत्नी को भी समय  नहीं दे पाया  और  उनकी  पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रसित हो गए इस प्रकार महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर अपने परिवार को छोड़कर  करोड़ों लोगों  की भलाई  करते करते 28 सितंबर  1995  को  दुनिया से  विदा  हो गए। 

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